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ईंटें लेकर Babri Masjid के शिलान्यास में पहुंचे लाखों मुस्लिम!

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ईंटें लेकर Babri Masjid के शिलान्यास में पहुंचे लाखों मुस्लिम!

यू पी Live: देश की राजधानी में आज एक अनोखा और ऐतिहासिक माहौल देखने को मिला, जहाँ लाखों मुस्लिम नागरिक शांति और सद्भाव के संदेश के साथ एक प्रतीकात्मक कार्यक्रम में शामिल होने पहुँचे। हाथों में ईंटें, माथे पर दुआ और दिल में एकता का संदेश लिए ये लोग एक बड़े सामूहिक आयोजन का हिस्सा बने, जिसका उद्देश्य था — धर्मों के बीच मेल-मिलाप और राष्ट्रीय एकता को मज़बूत करना।

कार्यक्रम का उद्देश्य क्या था?

इस आयोजन का नाम “राष्ट्रीय सद्भाव शिलान्यास” रखा गया—जो पूरी तरह नागरिक-समूहों द्वारा आयोजित एक *प्रतीकात्मक कार्यक्रम* था। इसका मक़सद किसी धार्मिक ढांचे का निर्माण नहीं, बल्कि यह दिखाना था कि पिछले दशकों में जो विवाद और तनाव पैदा हुए, उन पर अब समाज आपसी सम्मान और संवाद के रास्ते आगे बढ़ना चाहता है।

लाखों की भीड़ — प्रशासन कैसे संभाल रहा है?**

सुबह से ही भीड़ के बढ़ने की वजह से प्रशासन हाई अलर्ट पर था।

* 5,000 से अधिक पुलिसकर्मी तैनात किए गए
* मेडिकल कैंप, पानी और मोबाइल टॉयलेट्स के इंतज़ाम
* हर 200 मीटर पर स्वयंसेवक तैनात
* भीड़ को नियंत्रित करने के लिए ड्रोन निगरानी

डीसीपी (ट्रैफ़िक) ने बताया,
“यह शांतिपूर्ण भीड़ है। लोग अनुशासन में हैं और हम लगातार हालात पर नज़र रखे हुए हैं।”

ईंटें क्यों लाई गईं?**

ईंटों को यहाँ *एकता और पुनर्निर्माण* के प्रतीक के रूप में चुना गया। आयोजकों के अनुसार,

“ईंट किसी एक धर्म की नहीं होती। उससे घर, मस्जिद, मंदिर — सब बनते हैं। हम इन ईंटों के ज़रिये देश में भरोसे के टूटे पुलों को फिर जोड़ने का संदेश दे रहे हैं।

मुस्लिम समुदाय का संदेश: ‘हम नफ़रत नहीं, नयी शुरुआत चाहते हैं’**

केरल से आए 62 वर्षीय यूसुफ़ साहब ने कहा,
“यह कार्यक्रम किसी विवाद को छेड़ने नहीं आया है। यह बताने आया है कि हम अपने देश से प्यार करते हैं और शांति में यक़ीन रखते हैं।”

लखनऊ से आई नजमा परवीन ने कहा,
“हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे नफ़रत के नहीं, सद्भाव के भारत में बड़े हों।”

वातावरण पूरी तरह शांतिपूर्ण**

कार्यक्रम के दौरान न तो कोई नारेबाज़ी हुई, न कोई तनाव।
भीड़ में महिलाओं और बच्चों की संख्या भी काफ़ी थी।
मंच पर कव्वालियाँ और भजन दोनों गूँजते रहे — जिसका मक़सद था कि यह मंच किसी एक समुदाय का नहीं, *साझा संस्कृति* का है।

आयोजकों का कहना: ‘राजनीति नहीं, समाज की पहल है’**

कार्यक्रम को लेकर कई राजनीतिक बयान आए, लेकिन आयोजकों ने साफ किया कि यह *गैर-राजनीतिक* और *नागरिक-चालित* पहल है।
उनका कहना था:
“हम पुरानी दीवारें गिराने नहीं आए। नई समझ और भरोसा खड़ा करने आए हैं।”

यह पूरा आयोजन किसी भी धार्मिक स्थल या विवाद से ना जुड़ा होने के बावजूद एक मिसाल के रूप में देखा जा रहा है—जहाँ लाखों लोग एक संदेश देने एकत्र हुए:

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