
योगी आदित्यनाथ बिहार चुनाव से आउट
इंडिया Live: Bihar में राजनीतिक माहौल काफी गरमाता जा रहा है। पहले, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री Yogi Adityanath ने हाल ही में चुनावी मंच पर हलाल प्रमाणित उत्पादों को लेकर विवादित बयान दिए, जिसमें उन्होंने कहा कि “हलाल प्रमाणन से होने वाली आय का इस्तेमाल आतंकवाद, लव‑जिहाद और धर्मांतरण में हो रहा है” इस बयान को विश्लेषकों ने बिहार के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रख कर देखा है, क्योंकि ये बयान वहां के मत‑मंच के लिए उपयुक्त कहा जा रहा है।

दूसरी ओर, बिहार में अल्पसंख्यक समुदाय खासकर मुस्लिम वोटर्स के अधिकार और भूमिका को लेकर विवाद उभर रहा है। Asaduddin Owaisi ने सवाल उठाया है कि राज्य की करीब 17 प्रतिशत मुस्लिम आबादी के बावजूद **मुस्लिम मुख्यमंत्री क्यों नहीं हो सकता उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि मुख्यधारा की पार्टियाँ मुसलमानों को सिर्फ वोट बैंक मानती हैं, जबकि उनकी राजनीतिक भागीदारी को पूरी तरह नहीं अपनातीं।

आगे चलकर, मुस्लिम संगठनों ने Nitish Kumar की इफ्तार पार्टी का बहिष्कार किया है। उन्होंने इसका कारण बताया कि जदयू ने वक्फ (संशोधन) विधेयक का समर्थन किया है, जिससे उन्हें लगता है कि वक्फ संपत्तियों पर मुस्लिम समुदाय का अधिकार कमजोर पड़ रहा
इस बहिष्कार को राजनीतिक समायोजन (appeasement) की राजनीति के रूप में देखा गया है, जिससे बीजेपी ने भी सीधे निशाना साधा है कि विपक्ष ‘मुसलमानों को सिर्फ वोट बैंक के रूप में’ देख रहा है।
इन घटनाओं के बीच यह स्पष्ट दिख रहा है कि बीजेपी का “विकास और सुरक्षा” वाला एजेंडा बिहार में अपेक्षित गति नहीं ले पा रहा है — खासकर तब जब सामाजिक‑धार्मिक मुद्दे चुनावी मोर्चे पर उभरे हैं। Yogi के बयान, मुस्लिम समुदाय की उपेक्षा की शिकायतें और विपक्ष की रणनीति — ये तीनों मिल कर राज्य की राजनीति में नई लहर ला रहे हैं।
आगे की चुनौतियाँ साफ़ हैं: मुस्लिम समुदाय की राजनीतिक भागीदारी तथा पदस्थापनाओं को लेकर असमंजस है; बीजेपी को विकास‑केन्द्रित अपनी कहानी को फिर से खड़ा करना होगा; और विपक्ष को उद्देश्य‑पूर्ण मसलों पर जनता में विश्वास जगाना होगा।