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इजरायल ने ट्रंप को कैसे किया राजी!! जानिए विस्तार से

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इजरायल ने ट्रंप को कैसे किया राजी!! जानिए  विस्तार से

Iran Israel Conflict and America:इजराइल ने आखिर ट्रंप को कैसे राजी किया, अमेरिका ने ईरान पर हमला किया तो क्यों, क्या अमेरिका की ईरान से कोई दुश्मनी है या इजराइल से दोस्ती ये बड़ा सवाल है कि  अमेरिका का इजराइल से ऐसा क्या रिश्ता है जो वह इजराइल को सपोर्ट करता है

हमेशा इजराइल को क्यो सपोर्ट करता है

 

आख़िर इस सदाबहार दोस्ती का राज़ क्या है?

इसराइल के लिए अमेरिका का साथदंस कोई नई बात नहीं है. अमेरिका पहले भी इसराइल का समर्थक रहा है और आज भी वो उसके साथ मजबूती से खड़ा दिखता है आपको बता दे  अमेरिकी राष्ट्रपति हेनरी ट्रुमैन दुनिया के पहले ऐसे राजनेता थे, जिन्होंने सबसे पहले इसराइल को मान्यता दी थी.उसके सपोर्ट में खड़े थे पर उन्होंने इसराइल का साथ दिया क्यों उसके पीछे एक बड़ी वजह है दरअसल ये द्वितीय विश्वयुद्ध के ठीक बाद का दौर था जब अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शीत युद्ध ने आकार लेना शुरू कर दिया था.

उस दौरान अरब देश अपने तेल भंडारों और समुद्री रास्तों (स्वेज नहर का मार्ग ऐसा व्यापारिक रास्ता था, जिसके जरिये बड़े पैमाने पर अंतरराष्ट्रीय व्यापार होता था) की वजह से इलाक में दो वैश्विक शक्तियों के शक्ति परीक्षण का अखाड़ा बन गया था.

यूरोपीय ताकतें कमजोर हो रही थीं और अमेरिका अरब जगत में सत्ता संघर्ष का बड़ा बिचौलिया बन कर उभर रहा था.

तेल रिजर्व को लेकर अरब जगत में अमेरिका के हित बढ़ गए थे. लिहाजा उसे अरब देशों को नियंत्रित करने के लिए इसराइल की जरूरत थी.

यही वजह थी कि अमेरिका ने इसराइल को मान्यता देने और एक सैन्य ताकत में उसे बढ़ावा देने में कोई देर नहीं की.

तो वहीं एक तरफ पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और इसराइल के मौजूदा प्रधानमंत्री के बीच मतभेदों की वजह से थोड़े समय के लिए अमेरिका और इसराइल के संबंध तनावपूर्ण दिखे थे. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और इसराइल के मौजूदा प्रधानमंत्री के बीच मतभेदों की वजह से थोड़े समय के लिए अमेरिका और इसराइल के संबंध तनावपूर्ण दिखे थे.

दोनों में ईरान से न्यूक्लियर डील को लेकर टकराव दिखा था. नेतन्याहू ने रिपबल्किन पार्टी के बहुमत वाली यूएस कांग्रेस में जाकर अमेरिका की ईरान नीति को लेकर बराक ओबामा की तीखी आलोचना की थी.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे बड़ी ख़बर माना गया. ओबामा और नेतन्याहू के बीच मतभेद की ख़बरें आईं और लगा कि यहां से अमेरिका इसराइल को लेकर अपने पारंपरिक रुख में थोड़ा बदलाव ला सकता है.

लेकिन ऐसा नहीं हुआ. ओबामा ने अपने आठ साल के शासन काल में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इसराइल के ख़िलाफ़ लाए गए एक को छोड़ कर सारे प्रस्तावों को वीटो कर दिया था.

अपने कार्यकाल के आखिरी दिनों में इसराल के लिए 38 अरब डॉलर के पैकेज को भी मंजूरी दे दी थी.

अब यही सवाल हमेशा उठता है कि अमेरिका इसराइल का हमेशा समर्थन क्यों करता है

 

इसकी एक खाद वजह है अमेरिका की नज़र में अरब दुनिया की उथल-पुथल भरी राजनीति में इसराइल की रणनीतिक अहमियत.

शीत युद्ध के दौरान अमेरिका ने अरब जगत में सोवियत संघ के असर के ख़िलाफ़ इसराइल को एक अहम मोहरे के तौर पर इस्तेमाल किया.

शीत युद्ध के बाद तो अमेरिका पश्चिम एशिया में और ज्यादा सक्रिय हो गया और इसराइल, सऊदी अरब और मिस्र इसके अहम सहयोगी बन गए.

अमेरिका की इसराइल समर्थक नीति के लिए अमेरिकी लोगों की राय, वहां की चुनावी राजनीति और ताकतवर इसराइल लॉबी भी जिम्मेदार है.

ये सब मिल कर अमेरिका की इसराइल नीति को दिशा देने में अहम भूमिका निभाते हैं.

 

पिछले कुछ सालों के दौरान अमेरिकी डेमोक्रेटिक पार्टी में बर्नी सैंडर्स और एलिज़ाबेथ वारेन जैसे सीनेटर फ़लस्तीन के समर्थक बन कर उभरे हैं.

दोनों 2020 के राष्ट्रपति चुनाव के उम्मीदवारों की दौड़ में शामिल थे. बर्नी और वारेन जैसे सीनेटरों का कहना है कि इसराइल को दी जाने वाली आर्थिक मदद फ़लस्तीनियों के मानवाधिकारों की रक्षा जैसी शर्तों से जोड़ दी जानी चाहिए.

अमेरिकी संसद के हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव में एलेक्जेंड्रिया ओकासियो-कॉर्टेज़, इलहान उमर, अयाना प्रेस्ली और राशिदा तालेब जैसे लोग फ़लस्तीन के लिए मुखर आवाज़ बन कर उभरे bhi हैं. लेकिन अभी भी अमेरिका में जनमत इसराइल के समर्थन में है. इस सर्वे में शामिल 58 फीसदी अमेरिकी इसराइल के हितों के साथ खड़े दिखे. वहीं 75 फीसदी अमेरीकियों ने इसराइल को पॉजिटिव रेटिंग दी.

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