
तेजस्वी vs कांग्रेस — बड़ा विस्फोट!
इंडिया Live: राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता *तेजस्वी यादव* ने हाल में एक सार्वजनिक भाषण में कांग्रेस और उसके मुख्य चेहरे *राहुल गांधी* पर तीखे आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि राहुल गांधी की नेतृत्व में कांग्रेस अब “जमीन से कटकर” रह गई है और देश की वास्तविकता से पूरी तरह असंवादित है। तेजस्वी ने सवाल उठाया — “राहुल गांधी कब तक?” — यह पूछकर कि कांग्रेस कब तक सिर्फ कुछ भाषणों और वादों तक सीमित रहकर जनता की उम्मीदों को पूरा करेगी।

तेजस्वी के अनुसार, कांग्रेस के नेतृत्व में एक पुराना भ्रम चल रहा है — एक ऐसी राजनीति जो गलियारों में सुंदर आवाज़ें देती है, लेकिन ग्रामीण इलाकों और आम जनता की जमीनी मुसीबतों को महसूस नहीं कर पाती। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पिछले कुछ चुनावों में उसकी “वोटर अधिकार यात्रा” (Voter Adhikar Yatra) के माध्यम से एक बड़ी तस्वीर दिखाने की कोशिश तो करती रही, लेकिन असल में पार्टी कार्यकर्ता और सामान्य लोग उसकी राजनीतिक रणनीति और प्राथमिकताओं से जुड़ नहीं पा रहे। तेजस्वी ने यह तर्क भी पेश किया कि कांग्रेस ने महागठबंधन (Iब्लॉक) में सीटों के बंटवारे और गठबंधन की रणनीति तय करने में अपना वजूद बनाए रखने के लिए खुद को “क्लिक बनाने” की कोशिश की है — लेकिन वह जुड़ाव बनाकर नहीं, बल्कि सत्ता और छवि के लिए लड़ रही है।

तेजस्वी ने यह भी आलोचना की कि कांग्रेस में निर्णय लेने की प्रक्रिया बहुत केंद्रीकृत हो चुकी है — बड़े फैसले दिल्ली या राष्ट्रीय नेतृत्व के स्तर पर होते हैं, जबकि स्थानीय मुद्दों, दलगत ताकतों और बिहार जैसे राज्यों की जरूरतों को सही तरीके से प्राथमिकता नहीं दी जाती। उनका कहना है कि इससे गठबंधन के अंदर सहयोगियों में भी असंतोष है — उदाहरण के लिए, सीट विभाजन पर आरजेडी और कांग्रेस के बीच लंबी खींचतान रही है।

तेजस्वी ने आगे यह बात उठाई है कि कांग्रेस की हार को सिर्फ चुनाव कर्मियों की चूक या वोटर रोल की विसंगतियों (जैसे मतदाता सूची में कथित गड़बड़ियों) से नहीं समझा जाना चाहिए, बल्कि इसे कांग्रेस की दूर-नीति और असंगतियाँ भी जिम्मेदारी बनाती हैं। तेजस्वी ने यह आरोप लगाया है कि कांग्रेस वोट चोरियों या चुनाव आयोग के कामकाज पर लगातार आरोप लगाती है, लेकिन असल में वह अपने संदेश को जमीन तक नहीं पहुंचा पाती है — और इसलिए जनता में उसका भरोसा कमजोर होता जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, तेजस्वी की ये टिप्पणियाँ न केवल कांग्रेस नेतृत्व की आलोचना हैं, बल्कि महागठबंधन के भीतर उसकी रणनीतिक स्थिति को मज़बूत करने की चाल भी हो सकती है: वह कांग्रेस को यह बता रहा है कि गठबंधन सिर्फ फार्मेलिटी नहीं है, बल्कि वास्तविक प्राथमिकताओं, असरदार नेतृत्व और भरोसे के मुद्दे पर होना चाहिए।
तेजस्वी का सवाल “राहुल गांधी कब तक?” सिर्फ एक पॉलिटिकल नारा नहीं — बल्कि एक गंभीर चुनौति है: क्या कांग्रेस अपनी वर्तमान नेतृत्व शैली को बदल सकती है, जमीन की आवाज़ों को सुन सकती है, और महागठबंधन के भीतर अपनी भूमिका को सिर्फ प्रतीकात्मक न रखते हुए वास्तविक शक्ति और ज़िम्मेदारी में बदल सकती है?