
संसद में ‘साला’ कहते हो! अमित शाह : सुप्रिया श्रीनेत
इंडिया Live:हाल ही में संसद में एक बहस के दौरान राजनीति का माहौल काफी गर्म हो गया। इस दौरान सुप्रिया श्रीनेत ने अमित शाह के रवैये पर करारा पलटवार किया। उन्होंने कहा कि संसद में “साला” जैसे शब्द इस्तेमाल करना ठीक नहीं है और यह शिष्टाचार के खिलाफ है। सुप्रिया ने जोर देते हुए कहा कि अगर अमित शाह में दम है तो वह इस तरह के शब्दों के बजाय मुद्दों पर चर्चा करें। उनका कहना था कि देश के नागरिकों और संसद के सदस्यों को सम्मान देना जरूरी है, न कि व्यक्तिगत ताने-बाने या अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करना।

इस बयान के बाद राजनीतिक हलचल तेज हो गई। सुप्रिया ने स्पष्ट किया कि यह सिर्फ व्यक्तिगत हमला नहीं था, बल्कि लोकतंत्र और संसद की गरिमा बचाने के लिए किया गया था। उन्होंने यह भी कहा कि विपक्ष के मुद्दों पर जवाब देने के बजाय अगर मंत्रियों का ध्यान अपशब्दों और व्यक्तिगत टिप्पणी पर केंद्रित हो जाता है तो लोकतंत्र कमजोर पड़ता है। उनके इस गुस्से भरे बयान को लेकर सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में बहस तेज हो गई है। समर्थक इसे बहादुरी और जवाबदेही का उदाहरण बता रहे हैं, जबकि आलोचक इसे राजनीतिक ड्रामा और ध्यान भटकाने का तरीका मान रहे हैं।
विश्लेषकों का कहना है कि संसद में इस तरह की घटनाएँ चुनाव नजदीक आने पर बढ़ जाती हैं, क्योंकि नेता अपने राजनीतिक संदेश को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं। सुप्रिया श्रीनेते के इस पलटवार ने स्पष्ट किया कि विपक्ष भी अपनी आवाज़ बुलंद कर रहा है और केवल आरोप-प्रत्यारोप तक सीमित नहीं है। इसके साथ ही यह घटना यह भी दिखाती है कि भारतीय संसद में बहस कभी-कभी मुद्दों की बजाय व्यक्तियों के रवैये और भाषा पर केंद्रित हो जाती है।
कुल मिलाकर, सुप्रिया श्रीनेते का यह बयान लोकतंत्र और संसद की गरिमा के लिए किया गया प्रयास माना जा रहा है। यह घटना राजनीति में बहस और आरोप-प्रत्यारोप का हिस्सा है, लेकिन जनता के बीच यह सवाल भी उठता है कि नेता किस हद तक सम्मानजनक और मुद्दे पर ध्यान देने वाली राजनीति कर रहे हैं। इससे यह साफ दिखता है कि भारतीय राजनीति में शिष्टाचार, बहस और जवाबदेही की अहमियत अभी भी लोगों के लिए बड़ी चिंता का विषय है।