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बिहार में वोटर लिस्ट का बड़ा फैसला: अब केवल 11 दस्तावेज़ मान्य।

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बिहार में वोटर लिस्ट का बड़ा फैसला: अब केवल 11 दस्तावेज़ मान्य।

 

Special Intensive Revision:आज सुप्रीम कोर्ट में बिहार में चल रही विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर अहम सुनवाई हुई।

यह प्रक्रिया मतदाता सूची में बदलाव, नाम जोड़ने-घटाने का काम है, जो चुनाव आयोग की जिम्मेदारी होती है। इस बार इस प्रक्रिया में कई संवेदनशील मुद्दे उठे, खासकर बाढ़ प्रभावित इलाकों के मतदाताओं की पहचान और दस्तावेज़ जमा करने को लेकर।

बिहार के कई इलाकों में पिछले महीनों भारी बारिश और बाढ़ आई है, जिससे सैकड़ों गांव पानी में डूब गए और लाखों लोग विस्थापित हुए। ऐसे हालात में मतदाता पहचान के लिए आवश्यक दस्तावेज़ इकट्ठा करना मुश्किल हो गया।

कई लोगों के दस्तावेज़ गुम हो गए या खो गए। चुनाव आयोग ने इस बार मतदाता सूची की जांच और संशोधन के लिए कई नए दस्तावेज़ स्वीकार करने की बात कही है, लेकिन फिर भी कई लोग प्रमाण-पत्र जमा नहीं कर पा रहे हैं।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए चुनाव आयोग से जवाब मांगा कि ऐसे लोग जिनके पास दस्तावेज़ नहीं हैं या जो बाढ़ में प्रभावित हुए हैं, उन्हें क्या सुविधा दी जाएगी? क्या उन्हें अपील या प्रमाण-पत्र जमा करने का उचित समय दिया गया है? इसके साथ ही यह सवाल भी उठे कि अंतिम सूची 30 सितंबर को प्रकाशित होगी, और जिनका नाम उसमें कट जाएगा, उनके पास अपील करने का समय पर्याप्त होगा या नहीं।

 

 

आज की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को यह अधिकार दिया कि वह तय करे कि SIR कब और कैसे की जाए। कोर्ट ने कहा कि यह पूरी प्रक्रिया चुनाव आयोग के विशेषाधिकार में आती है और इसे “वोटर‑फ्रेंडली” बनाना जरूरी है।

 

साथ ही कोर्ट ने चुनाव आयोग के उस फैसले का समर्थन किया जिसमें 7 दस्तावेज़ों के बजाय अब कुल 11 दस्तावेज़ पहचान के लिए मान्य होंगे। यह बदलाव बाढ़ जैसे संकटों में प्रभावित लोगों को मदद करने के लिए किया गया है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग अपनी पहचान साबित कर सकें।

 

यह दस्तावेज़ हैं:

 

* मतदाता पहचान पत्र (EPIC)

* पासपोर्ट

* ड्राइविंग लाइसेंस

* पैन कार्ड

* राशन कार्ड (सहायक दस्तावेज़ के रूप में)

* आधार कार्ड (सहायक दस्तावेज़ के रूप में)

* मनरेगा जॉब कार्ड

* पेंशन दस्तावेज़

* शैक्षणिक पहचान पत्र

* बिजली/पानी/गैस का बिल (निवास प्रमाण के लिए)

* राजस्व या नगरपालिका कर रसीद, सरकारी भूमि रिकॉर्ड या किरायानामा

 

कोर्ट ने साफ किया कि आधार या राशन कार्ड को अकेले अंतिम प्रमाण के रूप में नहीं माना जाएगा, बल्कि ये सहायक दस्तावेज़ हैं। इससे मतदाता सूची में हर उस व्यक्ति को जगह मिलेगी जिसकी पहचान चुनाव आयोग तय करता है।

 

सुनवाई में यह भी चर्चा हुई कि बाढ़ प्रभावित इलाकों में लोग प्रमाण-पत्र जमा करने में असमर्थ हैं। कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिए कि वे ऐसे इलाकों में BLO (Booth Level Officers) को भेजकर घर-घर जाकर मदद करें ताकि कोई मतदाता बिना दस्तावेज़ के न रह जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित होने के बाद जिन लोगों के नाम कटेंगे, उन्हें अपील करने का पर्याप्त समय और मौका दिया जाना चाहिए ताकि किसी को भी वोटर सूची से हटाने की प्रक्रिया बिना न्याय के न हो।

चुनाव आयोग ने अदालत को आश्वासन दिया है कि किसी भी योग्य मतदाता का नाम बिना उचित सूचना और सुनवाई के मतदाता सूची से हटाया नहीं जाएगा। इसके लिए दो-स्तरीय अपील प्रक्रिया लागू की गई है, जिसमें मतदाता अपने नाम की कटौती पर आपत्ति कर सकता है।

 

चुनाव आयोग ने यह भी कहा कि वे दस्तावेज़ न होने की स्थिति में मतदाताओं को सहायता देंगे और इस प्रक्रिया को पूरी पारदर्शिता से संपन्न करेंगे।

 

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यह सुनिश्चित होगा कि बिहार के बाढ़ प्रभावित इलाकों में रहने वाले लोगों का मतदान अधिकार सुरक्षित रहे। यह फैसला सभी मतदाताओं को एक समान अवसर देने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।

 

मतदाता सूची की इस समीक्षा प्रक्रिया से चुनाव की निष्पक्षता और लोकतंत्र की मजबूती होगी। इससे यह भी संदेश जाएगा कि हर नागरिक का वोट महत्वपूर्ण है, चाहे वह प्राकृतिक आपदा से प्रभावित क्यों न हो।

 

आज सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में चल रही मतदाता सूची संशोधन प्रक्रिया को संविधान के अनुरूप और मतदाता हितैषी बनाए रखने का फैसला दिया है। यह निर्णय न केवल चुनाव आयोग को प्रक्रिया नियंत्रित करने का अधिकार देता है, बल्कि मतदाताओं को उचित सुरक्षा और सहायता भी प्रदान करता है।

 

बाढ़ और अन्य आपदाओं से प्रभावित इलाकों के मतदाताओं के लिए यह एक राहत की खबर है। अब चुनाव आयोग को ज़्यादा जिम्मेदारी के साथ यह प्रक्रिया पूरी करनी होगी ताकि कोई भी नागरिक मताधिकार से वंचित न रहे।

 

इस फैसले से लोकतंत्र की मजबूत नींव रखी जा सकेगी और चुनाव की प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनी रहेगी।

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