
बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय रविवार को जेडीयू में शामिल हो गएं। सीएम आवास पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गुप्तेश्वर पांडेय को पार्टी की सदस्यता दिलाई।
बिहार : इसी सप्ताह डीजीपी के पद से ऐच्छिक सेवानिवृत्ति लेने वाले गुप्तेश्वर पांडेय शनिवार को जदयू कार्यालय पहुंचे। नीतीश कुमार से मुलाकात कर लौटते समय उन्होंने पत्रकारों से संक्षिप्त बातचीत में कहा कि यह एक शिष्टाचार मुलाकात थी। यह पूछे जाने पर कि क्या वह जदयू में शामिल हो रहे हैं, पांडेय ने कहा कि अभी वह किसी भी दल में शामिल नहीं हो रहे हैं। मैं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को धन्यवाद देने आया था। डीजीपी के पद पर रहते हुए उन्होंने मुझे खुलकर काम करने का मौका दिया, जिसके लिए मैं उन्हें धन्यवाद देता हूं
जैसा कि विदित है कि गुप्तेश्वर पांडेय ने मंगलवार, 22 सितंबर की देर शाम वीआरएस ले लिया था। 1987 बैच के आईपीएस अधिकारी गुप्तेश्वर पांडेय का कार्यकाल पांच महीने बाद समाप्त होने वाला था। 31 जनवरी 2019 को उन्हें सूबे का डीजीपी बनाया गया था। राज्य के पुलिस महानिदेशक के रूप में गुप्तेश्वर पांडेय का कार्यकाल 28 फरवरी 2021 को पूरा होनेवाला था
फेम इंडिया के हॉर्डिग से पटा बक्सर
फेम इंडिया नाम की संस्था ने डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय को देश के 50 चर्चित भारतीयों की सूची में टॉप 10 में शामिल किया है। ये सर्वे फेम इंडिया द्वारा साल 2020 के लिए किया गया था, जिसमें डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय ने टॉप टेन में जगह बनाई है। अलग-अलग कैटगरी में देश भर के विभिन्न क्षेत्रों के प्रबुद्ध लोगों की राय और ग्राउंड रिपोर्ट को आधार बना कर किए गए हैं। इसकी घोषणा होने के बाद से शहर में पिछले दो दिनों में जगह- जगह दर्जनों हॉर्डिंग लगाए गए हैं। गुप्तेश्वर पांडेय की तस्वीर के साथ बने इस पोस्टर को भी चर्चा का बिंदु बनाया गया है। वहीं बिग बॉस और गैंग्स ऑफ वासेपुर फेम दीपक ठाकुर ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर तस्वीर पोस्ट की है। इनके म्यूजिक वीडियो पर भी बहस हो रही है
स्थानीय लोगों से बराबर संपर्क में रहे
डीजीपी के पद पर रहने के बाद भी गुप्तेश्वर पांडेय ने बराबर स्थानीय लोगों के दुख- सुख में शामिल होने की कोशिश की। पिछले छह माह से तो हर कुछ माह पर बक्सर विभागीय कार्यों से भी आते थे तो अपने गृह जिले के पुराने गुरुजनों, सामाजिक हस्तियों, साहित्यकारों से मिलकर उनका दुख बांटने का प्रयास करते थे। अपनी व्यथा – पीड़ा लेकर लोग पटना तक उनके पास पहुंच जाते थे। इस सबकी सुनवाई भी होती थी। अपने गांव गेरुआ बांध से भी उनका नाता बराबर बना रहा।