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“मुस्लिम भी हिंदू की संतान एक बयान, कई मायने”:-मोहन भगवत

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“मुस्लिम भी हिंदू की संतान एक बयान, कई मायने”:-मोहन भगवत

इंडिया Live: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक *मोहन भगवत* का हालिया बयान — “भारत में चार तरह के हिंदू हैं, और मुसलमान भी हिंदू की संतान हैं” — पूरे मुल्क में चर्चा का विषय बन गया है। कुछ लोग इसे विवादास्पद मानते हैं, तो कुछ लोग कहते हैं कि यह बयान हिन्दू-मुस्लिम एकता की तरफ़ इशारा करता है।

भगवत ने अपने भाषण में कहा कि *“भारत में कोई अ-हिंदू नहीं है, सब इस मिट्टी की औलाद हैं।”* उनका मतलब यह नहीं था कि सबको हिंदू धर्म अपनाना चाहिए, बल्कि यह कि जो भी इस देश में पैदा हुआ है — चाहे वो मुस्लिम हो, ईसाई हो, सिख हो या बौद्ध — वो सब एक ही ज़मीन, एक ही तहज़ीब, और एक ही इतिहास से जुड़े हैं।

इस्लाम क्या कहता है

अगर इस्लाम के नज़रिए से देखें, तो कुरआन में साफ़ कहा गया है कि *सारी इंसानियत एक ही ख़ुदा की बनाई हुई है।*> “
इस लिहाज़ से देखा जाए तो भगवत का यह कहना कि “सब इस धरती के बेटे-बेटियाँ हैं”, इस्लाम की बुनियादी इंसानियत वाली तालीम के काफ़ी करीब है।

हाँ, इस्लाम यह नहीं कहता कि किसी एक मज़हब या कल्चर को सब पर थोप दिया जाए, बल्कि वह यह कहता है कि *हर इंसान को अपने मज़हब पर अमल करने की पूरी आज़ादी है* — लेकिन दूसरों की इज़्ज़त के साथ। इसलिए, अगर भगवत का मक़सद सिर्फ़ यह बताना है कि सब भारतीय एक परिवार हैं, तो इसमें बुराई नहीं; मगर अगर इसका मतलब यह लिया जाए कि सबको “हिंदू” कहलाना चाहिए, तो यह बात इस्लाम की तालीम से मेल नहीं खाती।

अब सवाल यह उठता है कि भगवत का बयान सही है या ग़लत?
अगर इसे सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप में देखा जाए — यानी यह मानकर कि सबका रिश्ता एक ही धरती और पुरखों से है — तो यह सही और सकारात्मक बात है। भारत की मिट्टी ने ही हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सबको पाला-पोसा है।
लेकिन अगर इसे धार्मिक पहचान बदलने की कोशिश के तौर पर देखा जाए, तो यह कई लोगों को परेशान कर सकता है।

कई मुस्लिम नेताओं का कहना है कि “संतान” वाला शब्द धार्मिक तौर पर ठीक नहीं लगता, क्योंकि मुसलमान अपने मज़हब को तौहीद (एक ख़ुदा) की बुनियाद पर मानते हैं। इस लिहाज़ से “हिंदू की संतान” कहना धार्मिक तौर पर सही नहीं, लेकिन सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से इसे रूपक (symbolic) तौर पर समझा जा सकता है।

इसका असर मुसलमानों और हिंदुओं पर क्या होगा?**

इस बयान का असर दोनों समुदायों पर अलग-अलग हो सकता है।

मुसलमानों में** कुछ लोग इसे “अपनी पहचान को मिटाने की कोशिश” समझ सकते हैं, जबकि कुछ इसे “एकता और भाईचारे की बात” मान सकते हैं।
* *हिंदुओं में* कई लोग इसे “समरसता और मेल-मिलाप का संदेश” मान रहे हैं, जो धार्मिक दीवारों को कमज़ोर करता है।

अगर दोनों तरफ़ के लोग इसे सकारात्मक नज़रिए से देखें — यानी “हम सब एक मिट्टी के हैं” — तो यह देश की एकता और अमन के लिए अच्छा साबित हो सकता है।

मोहन भगवत का यह कहना कि “मुस्लिम भी हिंदू की संतान हैं” सिर्फ़ एक राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि एक तरह का संवाद-आमंत्रण है।
अगर इसे जबरन धर्म की दिशा में ले जाया जाए, तो इससे नफ़रत बढ़ेगी।
लेकिन अगर इसे इंसानियत और भारतीय एकता के पैग़ाम की तरह लिया जाए, तो यह समाज में मोहब्बत और भाईचारे की नई शुरुआत बन सकता है।

आख़िरकार, इस्लाम और हिंदू धर्म दोनों की तालीम यही कहती है —
*“इंसानियत सबसे बड़ी इबादत है।”*
अगर इस सोच को अपनाया जाए, तो हिंदू-मुस्लिम के बीच दीवारें नहीं, बल्कि पुल बन सकते हैं।

 

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