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बिहार में सत्ता पलट, नीतीश गए, अब कौन?

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बिहार में सत्ता पलट, नीतीश गए, अब कौन?

Bihar Election Equations:बिहार की सियासत इन दिनों एक दिलचस्प मोड़ पर खड़ी है। नितीश कुमार, जो कई बार मुख्यमंत्री रहे हैं और ‘सुशासन बाबू’ के नाम से जाने जाते हैं, अब उम्र के उस पड़ाव पर पहुंच चुके हैं जहाँ सेहत एक बड़ा मुद्दा बन जाती है। हाल ही में उनकी तबीयत को लेकर मीडिया और राजनीतिक

गलियारों में कई तरह की चर्चाएं हो रही हैं। कोई कहता है कि वो अब ज़्यादा एक्टिव नहीं हैं, कोई कहता है कि वो जल्द ही राजनीति से रिटायरमेंट ले सकते हैं। वैसे भी उम्र और स्वास्थ्य दो ऐसे पहलू होते हैं जिनसे कोई नेता चाहे तो भी नहीं बच सकता।

दूसरी तरफ़ बात करें नरेंद्र मोदी और बीजेपी की, तो 2024 के लोकसभा चुनाव में जो झटका मिला है, उससे उनकी छवि को बड़ा नुक़सान पहुँचा है। पहले जो मोदी लहर पूरे देश में चलती थी, अब उसमें उतनी ताक़त नज़र नहीं आ रही। एनडीए को बहुमत भले ही मिल गया हो, लेकिन वो आत्मविश्वास और अड़ियल रुख़ अब पहले जैसा नहीं रहा। ये भी पहली बार हुआ कि मोदी सरकार को अपने सहयोगी दलों पर ज़्यादा निर्भर रहना पड़ रहा है। राजनीति में ये संकेत बहुत मायने रखते हैं। ये बताता है कि जनता अब नए विकल्पों की तलाश में है।

अब आइए बिहार की ज़मीन पर वापस चलें, जहाँ एक युवा चेहरा धीरे-धीरे मज़बूती से उभर रहा है — तेजस्वी यादव। लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी कभी सिर्फ़ ‘नेता का बेटा’ माने जाते थे, लेकिन अब उन्होंने अपनी मेहनत और ज़मीन से जुड़े काम से लोगों को प्रभावित किया है। जब वे उपमुख्यमंत्री थे, तब भी उन्होंने स्वास्थ्य, शिक्षा और नौकरी के मुद्दों पर ज़ोर दिया। अब जब नितीश कुमार की सेहत गिर रही है और बीजेपी भी कमज़ोर दिख रही है, तो लोगों की निगाहें तेजस्वी पर टिक रही हैं।

आरजेडी के लिए ये वक्त किसी मौके से कम नहीं है। पार्टी पहले से ज़्यादा संगठित और एक्टिव है। तेजस्वी के पास युवा वर्ग का सपोर्ट है, मुसलमान और यादव वोट बैंक उनका पारंपरिक आधार है, और अब पिछड़े वर्गों में भी उनकी लोकप्रियता बढ़ रही है। वो बार-बार बेरोजगारी, महंगाई और शिक्षा जैसे मुद्दों पर सरकार को घेरते रहे हैं। ऐसे में अगर नितीश राजनीति से दूरी बनाते हैं, या किसी कारणवश मुख्यमंत्री पद छोड़ते हैं, तो तेजस्वी सबसे मज़बूत दावेदार के रूप में सामने आएंगे।

माना जा रहा है कि अगर राज्य में जल्द ही कोई बड़ा बदलाव होता है — जैसे नितीश का इस्तीफा, या बीजेपी-जेडीयू में दरार — तो तेजस्वी के लिए ‘सियासी लॉटरी’ खुल सकती है। सियासत में हर वक्त मौका नहीं मिलता, लेकिन जब मिलता है तो समझदार नेता उसे दोनों हाथों से पकड़ते हैं। तेजस्वी फिलहाल इसी मौके की तलाश में हैं और जिस तरह से बिहार की फिज़ा बदल रही है, उससे यही लगता है कि वो वक्त अब दूर नहीं।

फिलहाल तो जनता भी बदलाव की चाह रखती दिख रही है। नई सोच, नया जोश, और एक युवा नेतृत्व का सपना बहुत से लोगों की आँखों में पल रहा है। तेजस्वी अगर जनता का भरोसा जीतने में कामयाब रहे तो शायद वाक़ई उनकी ‘लॉटरी’ लग जाए — और बिहार को एक नया नेता मिल जाए।

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