
SC की राहुल को कड़ी फटकार।
इण्डिया Live: देश की सबसे बड़ी अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट में आज उस बयान पर सुनवाई हुई, जिसमें राहुल गांधी ने यह दावा किया था कि चीन ने भारत की जमीन कब्जा ली है। अदालत ने इस बयान को लेकर राहुल गांधी से सीधा सवाल किया आपको यह कैसे पता चला कि चीन ने भारतीय जमीन पर कब्जा किया है? और आपके पास इस बात की पुख्ता जानकारी क्या है?
इस दौरान कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर कोई व्यक्ति खुद को एक जिम्मेदार नागरिक मानता है, और खासकर अगर वो देश का नेता है, तो उसे ऐसा बयान देने से पहले ठोस सबूत पेश करने चाहिए। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि अगर आप सच्चे भारतीय होते तो शायद इस तरह की टिप्पणी करने से पहले सोचते।”
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार के वकील ने राहुल गांधी के बयान को “गंभीर” और “राष्ट्रहित के खिलाफ” बताया। उनका कहना था कि इस तरह की बयानबाज़ी से देश की विदेश नीति और सुरक्षा पर असर पड़ सकता है।
राहुल गांधी की ओर से कहा गया कि उन्होंने जो भी कहा, वह संसद और पब्लिक डोमेन में उपलब्ध तथ्यों के आधार पर था। उनका दावा है कि सीमावर्ती इलाकों में गांव खाली हो रहे हैं और चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के पास कई जगहों पर निर्माण किया है।
कोर्ट ने पूछा कि अगर ऐसा है, तो आपने इस विषय को उचित मंच यानी संसद या राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के समक्ष क्यों नहीं उठाया? कोर्ट का यह भी कहना था कि भारत की अखंडता और सुरक्षा पर टिप्पणी करते समय हर किसी को बेहद जिम्मेदारी से बोलना चाहिए।
अब यह मामला न सिर्फ राजनीतिक रूप से संवेदनशील बन गया है, बल्कि इसका कानूनी एंगल भी तेजी से बढ़ रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी से इस बयान की तथ्यों के आधार पर सफाई मांगी है और कहा है कि अगली सुनवाई में उनके पास ठोस दस्तावेज़ होने चाहिए।
इस मुद्दे पर अब राजनीतिक हलकों में भी गर्मी है। कांग्रेस ने कोर्ट की टिप्पणियों पर फिलहाल कोई सीधा जवाब नहीं दिया, लेकिन पार्टी सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी देश की सुरक्षा को लेकर हमेशा सजग रहे हैं और उन्होंने पहले भी LAC पर विवादों को उठाया है।
वहीं, भाजपा नेताओं ने कोर्ट की टिप्पणी को राहुल गांधी के लिए “करारा तमाचा” बताया और कहा कि अब देशद्रोह जैसा बयान देने वालों को सबूतों के साथ सामने आना होगा।
इस पूरे मामले का असर देश की राजनीति और आने वाले सत्रों में संसद की बहसों पर भी साफ़ दिखेगा। सवाल अब सिर्फ बयान का नहीं, बल्कि यह भी है कि क्या एक नेता सार्वजनिक मंच से कोई भी टिप्पणी कर सकता है — बिना किसी तथ्य के?
इसका जवाब देश की सबसे बड़ी अदालत के अगले निर्देश में मिलेगा। देश अब यह देख रहा है कि इस बयान का क्या असर होता है – सिर्फ राजनीति तक सीमित रहता है, या कोई कानूनी परिणाम भी सामने आता है।